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संदेश
श्रीअरविन्द अंतर्राहीय शिक्षा-केंद्र के प्रतीक का अर्थ
ऐक्यबद्ध ईश्वर और ईश्वरी की समर्थ अभिव्यक्ति
- श्रीमां
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श्रीअरविन्द ने अपने काम के विकास के बारे में जो अभिनव रूप सोचा था वह है पांडिचेरी में एक अंतर्राष्ट्रीय विश्व-विद्यालय की स्थापना जिसमें सारी दुनिया से विद्यार्थी आ सकें ।
अब यह सोचा गया हैं कि उनके नाम का सबसे अधिक उचित स्मारक होगा इस विश्वविद्यालय की स्थापना जो इस बात को ठोस रूप में अभिव्यक्त कर सके कि उनका काम अबाध शक्ति के साथ चलता जा रहा हैं ।
(१९५१) * श्रीअरविन्द स्मारक सम्मेलन के लिये उद्घाटन-संदेश
श्रीअरविन्द हमारे बीच में उपस्थित हैं और अपनी समस्त सृजनात्मक प्रतिभा के साथ विश्वविद्यालय केंद्र के निर्माण की अध्यक्षता कर रहे हैं । उन्होंने बरसों तक यह माना था 'कि भावी मानवता को अतिमानसिक ज्योति ग्रहण करने योग्य बनाने के लिये वह आज के श्रेष्ठ लोगों को धरती पर नयी ज्योति, शक्ति और जीवन अभिव्यक्त करनेवाली नयी जाति में रूपांतरित करें ।
उनके नाम से आज मैं इस सम्मेलन का उद्घाटन करती हूं जो उनके सबसे अधिक प्रिय आदर्शों में से एक को चरितार्थ करने के लिये हो रहा हैं।
(२४-४-१९५१)
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विद्यार्थियों की प्रार्थना२
हमें वह वीर योद्धा बना जो बनने के लिये हम अभीप्सा करते हैं । वर दे कि हम डटे रहने का प्रयास करनेवाले भूत के विरुद्ध, सफलतापूर्वक उस भविष्य का युद्ध लड़ सकें जो अभी जन्म लेने को है ताकि नयी चीजें अभिव्यक्त हो सकें और हम उन्हें ग्रहण करने योग्य बनें ।
(६-१-१९५२)
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मुझे पूरा विश्वास हैं , मैं बिलकुल आश्वस्त हू, मेरे मन में लेशमात्र मी संदेह नहीं है कि यह विश्वविद्यालय, जो यहां स्थापित किया जा रहा हू धरती पर सबसे बड़ा ज्ञानपीठ होगा ।
इसमें पचास वर्ष लग सकते हैं, इसमें सौ वर्ष लग सकते हैं, तुम्हें मेरे यहां रहने के बारे में संदेह हो सकता हैं। मै यहां होऊं या न होऊं, मेरा काम पूरा करने के लिये मेरे ये बच्चे यहां होंगे ।
और जो आज इस दिव्य कार्य मे सहयोग देंगे उन्हें ऐसी असाधारण उपलब्धि मे भाग लेने का आनंद और गर्व प्राप्त होगा ।
(२८-५-१९५२)
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हम यहां वही करने के लिये नहीं हैं जो और करते हैं (उससे थोड़ा अच्छा क्यों न हो) ।
१श्रीअरविन्द अंतर्राष्ट्रीय विथविद्यालय केंद्र' के उद्घाटन के समय यह दी गयी थीं।
१०२ हम यहां वह करने के लिये हैं जो और नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें यह ख्याल ही नहीं हैं कि यह किया जा सकता हैं ।
हम यहां भविष्य के बच्चों के लिये दिव्य भविष्य का मार्ग खोलने के लिये हैं । और कोई चीज कष्ट उठाने लायक और श्रीअरविन्द की सहायता के योग्य नहीं हैं ।
(६-९-१९६१)
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कक्षओं के वार्षिक उद्घाटन के समय दिये गये संदेश
एक और वर्ष बीत गया और अपने पीछे पाठों का बोझा छोड़ता गया जिनमें कुछ कठोर हैं और कुछ पीडाजनक भी ।
अब एक नया वर्ष शुरू हो रहा हैं और अपने साथ प्रगति और उपलब्धियों की संभावनाएं ला रहा हैं। लेकिन इन संभावनाओं का पूरा लाभ उठाने के लिये... हमें पिछले पाठों को सम्मन चाहिये ।
यह जानना अधिक महत्त्वपूर्ण हैं कि सभी दुर्घटनाएं निक्षेतना का परिणाम होती हैं । फिर भी, बाहरी रूप से, उनके मुख्य कारणों में से एक है अनुशासनहीनता का भाव । अनुशासन के लिये एक प्रकार का तिरस्कार ।
यह हमारे ऊपर छोड़ा गया है कि हम अनुशासनयुक्त सतत प्रयास के द्वारा यह प्रमाणित करें कि हम अधिक सचेतन और अधिक सत्य जीवन की अपनी अभीप्सा मे सच्चे और निष्कपट हैं ।
(१६ -१२-१९६६)
सत्य हीं तुम्हारा स्वामी और तुम्हारा पथ-प्रदर्शक हो ।
हम अपनी सत्ता और अपने क्रिया-कलाप में सत्य और उसकी विजय के लिये अभीप्सा करते हैं ।
सत्य के लिये अभीप्सा ही हमारे प्रयासों की गति और ऊर्जा हो ।
हैं सत्य! हम तेरा पथ-प्रदर्शन चाहते हैं । धरती पर तेरा हीं राज्य आये ।
(१६-१२-१९६७)
जब कोई सत्य में निवास करता हैं तो वह सभी विरोधों के अपर होता हैं ।
(१६-१२-१९६८)
तुम जो सिखाना चाहते हो वह पहले तुम्हें जीना चाहिये ।
नूतन चेतना के बारे मे बोलने के लिये, वह चेतना तुम्हारे अंदर प्रवेश करे और
१०३ तुम्हें अपने रहस्य बतलाये । केवल तभी तुम कुछ क्षमता के साथ बोल सकते हो ।
नूतन चेतना में अपर उठने के लिये पहली शर्त हैं मन की इतनी विनयशीलता कि तुम्हें यह विश्वास हो कि जो कुछ तुम समझते हों कि तुम जानते हो वह जो कुछ सीखना बाकी हैं उसके आगे कुछ मी नहीं हैं ।
बाहरी सैरि पर जो कुछ तुमने सीखा है वह उच्चतर ज्ञान की ओर उठने में सहायक एक कदम हो ।
(१६-१२ -१९६९)
केवल शांत-स्थिरता मे हीं सब कुछ जाना और किया जा सकता है । जो कुछ उत्तेजना और उग्रता मे किया किया जाता हैं वह मतिमंद और मूर्खता हैं । सत्ता मे भागवत उपस्थिति का पहला चिह्न हैं शान्ति ।
हम यहां और जगहों सें ज्यादा अच्छा करने के लिये और अपने-आपको अतिमानसिक भविष्य के लिये तैयार करने के लिये हैं । इसे कभी न भूलना चाहिये । मै सबसे सच्चे, निष्कपट सद्भाव सें अनुरोध करती हूं ताकि हमारा आदर्श चरितार्थ हो सके ।
(१६-१२-१९७१)
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दिल्ली के 'मदर्स इंटरनेशनल स्कूल' के नाम संदेश
पृथ्वी पर एक नयी ज्योति प्रकट हुई हैं । आज जिस नये विद्यालय का उद्घाटन हो रहा हैं वह उसका पथ-प्रदर्शन पाये ।
आशीर्वाद ।
(२३-४-१९५६)
सत्य के प्रति अपने प्रयास में हमें वास्तविक रूप सें सच्चा और निष्कपट होना सीखा ।
(२३-४-१९५७)
विगत कल की सिद्धियां आगामी कल की उपलब्धियों की ओर छलांग लगाने के लिये लचकदार तख्ता हों ।
(२३-४-१९५८)
१०४ आओ, हम अपने-आपको धरती पर अभिव्यक्त होते हुए नये जीवन के लिये तैयार करें ।
(२३-४-१९५९)
सबसे अच्छे विद्यार्थी वे हैं जो जानना चाहते हैं, वे नहीं जो दिखाना चाहते हैं ।
(२३-४-१९६६)
मदर्स स्कूल-सचाई, निष्कपटता ।
(२३-४-१९६७)
निष्कपटता का माप सफलता का माप हैं ।
(२३-४-१९६८)
भविष्य प्रत्याशा से भरा है । अपने-आपको उसके लिये तैयार करो । आशीर्वाद ।
(२३-४-१९६९)
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'श्री मीराम्बिका विद्यालय, अहमदाबाद' के उद्घाटन पर संदेश
श्रद्धा और सच्चाई सफलता के जुड़वां एजेंट हैं । आशीर्वाद ।
(१४-६-१९६५)
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